Sunday, 5 June 2011

चल पड़े पैर जिस और पथिक

चल पड़े पैर जिस और पथिक ,उस पथ से फिर डरना केसा ?
                                   यह रुक -रुक कर बढना केसा  ?
होकर चलने को उद्धत तुम ना तोड़ सके बंधन घर के |
सपने सुख वैभव के राही ना छोड़ सके अपने उर के |
जब शोलो पर ही चलना है . पग फुक -फूंक कर रखना केसा ||

पहले ही तुम पहचान चुके यह पथ तो काँटों बाला है | \
पग -पग पर पड़ी शिलाए है कंकड़ मए गद्यों वाला है |

दुर्गम पथ अँधियारा छाया फिर मखमल का सपना केसा ||
होता है प्रेम फकीरी से इस पथ पर चलने वालो को ||
पथ पे बिछ जाना पड़ता है इस पथ पर चलने वालो को
अपने सुख को खोने आकर यह सुख -दुःख का रोना केसा ||

इस पथ पर बदने वालो को ,बढना ही हे केवल आता ,,
आती जो जग में बढ़ाये उनसे बस लड़ना ही आता ||

तुम भी जब चलते उस पथ  पर भीर रुकना केसा और झुकना केसा ..........झुकना कैसा ....|||

1 comment:

  1. yes you just walk then you really achieve your
    "GOL"


    really think different and some change

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